फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ने वाली शिवरात्रि महाशिवरात्रि कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन माह चतुर्दशी तिथि को ही भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। हिंदू पंचाग के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है।चतुर्दशी तिथि एक मार्च सुबह 3:16 बजे से शुरू होकर देर रात्रि 1 बजे समाप्त होगी। शास्त्रों के एक श्लोक के अनुसार 'वेदः शिवः,शिवः वेदः'अर्थात वेद ही शिव हैं और शिव ही वेद हैं। कहा गया है, ''रुतम -दुःखम द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः' यानि भगवान आशुतोष सभी दुखों को नष्ट कर देते हैं। भक्तजन भोलेनाथ को रिझाने के लिए जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, दुग्धाभिषेक करने के साथ-साथ पंचामृत से भोलेनाथ का अभिषेक कर बिल्वपत्र, बेर, गाजर, सोंगरी चढ़ाकर और पंचोपचार पूजन कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ पत्ते ऐसे भी हैं जिन्हें महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को अर्पित करके मनचाही कामना को पूर्ण कर सकते हैं।

 
मन के विकार दूर करने के लिए
शिवजी को बेलपत्र के बाद दूसरा सबसे प्रिय लगने वाला पत्ता भांग का है। शिवलिंग पर भांग चढ़ाने से हमारे मन के विकार और बुराइयां दूर होती हैं। भांग एक औषधि है,मान्यता हैं कि जब शिव जी ने विष का पान किया था तब जहर का जहर से उपचार करने के लिए भांग के पत्ते देवताओं ने शिवजी पर चढ़ाए थे।

 
शनिदोष से मुक्ति
आमतौर पर शमी के पत्ते शनिदेव को ही चढ़ाए जाते हैं,लेकिन ये पत्ते शिवलिंग पर भी चढ़ाए जाते हैं। रोज सुबह शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं और इसके बाद बिल्व के साथ ही शमी के पत्ते भी जरूर चढ़ाएं। ऐसा करने से भोलेनाथ के साथ-साथ शनिदेव की कृपा भी बनी रहेगी।

 
अकाल मृत्यु से रक्षा
शास्त्रों में दूर्वा यानी घास का बहुत महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इसमें अमृत बसा है। भगवान शिव और उनके पुत्र गणेश जी को दूर्वा बेहद प्रिय है। भगवान शिव को दूर्वा अर्पित करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
 
धनलाभ के लिए
भगवान शिव को आम के पत्ते अर्पित करने से वे अपने भक्तों का दुर्भाग्य दूर करते हैं,साथ ही धन-लाभ की संभावनाएं बनती हैं। जीवन में सुख-सौभाग्य आता है।