तुर्की की बढ़ती हेकड़ी: चीन-रूस की चाल और भारत का रणनीतिक जवाब
दोस्त, दोस्त न रहा…ये कुछ फिल्मी लाइनें इस समय तुर्की पर खूब सूट कर रही हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के माहौल में तुर्की ने एहसान फरामोश बनकर पाकिस्तान को हथियार सप्लाई किए. इसके पीछे कई सारे कारण हैं. तुर्की चीन और रूस के दम पर उछल रहा है. हालांकि, उसे भारत अपने तरीके से बढ़िया सबक भी सिखा सकता है. आइए समझते हैं कि कंगाल पाकिस्तान के साथ तुर्की क्यों खड़ा है. उसे भारत की दोस्ती तोड़ने वाला क्यों कहा जा रहा है और भारत उसे कैसे झटका दे सकता हैसाल 2023 में पूरा तुर्की भूकंप से दहल गया था. ऐसे मौके पर भारत ने वहां पर अपने विमान भेज कर राहत बचाव कार्य किया और उस ऑपरेशन को ऑपरेशन दोस्ती नाम दिया. लेकिन उस घटना के करीब 2 साल के बाद जब भारत ने आतंकियों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान पर लॉन्च किया. तब तुर्की ने भारत की दोस्ती की परवाह न करते हुए पाकिस्तान को लगातार हथियार सप्लाई किए. पाकिस्तानी सेना ने उन हथियारों का इस्तेमाल भारतीय सैनिकों और आम-नागरिकों को निशाना बनाने में किया. तुर्की का भारत का साथ न देने के पीछे कारण चीन और रूस के साथ उसके रिश्ते हैं. आइए आपको इसका पूरा गणित समझाते हैं.
1.चीन-रूस के बल पर उछल रहा तुर्की
भारत और पाकिस्तान के तनाव के बीच में तुर्की ने भारत साथ क्यों नहीं दिया. इसके पीछे ये कुछ वजहें हो सकती हैं. तुर्की इस समय चीन-रूस के दम पर उछल रहा है. क्योंकि उसके इन दोनों मजबूत देशों के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते हैं. तुर्की अपनी एनर्जी जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है. वह उससे बड़े पैमाने पर इंपोर्ट करता है. साल 2023 में उसने रूस से करीब 94 हजार करोड़ रुपये का निर्यात किया था. वहीं, इससे पहले भी रूस से उसने बहुत सारी चीजें खरीदी हैं. जैसे कि साल 2019 में उसने रूस से S-400 मिसाइल भी मंगाई थी. कुल मिलाकर रूस जैसे मजबूत ट्रेड पार्टनर की वजह से तुर्की व्यापार में ठीक-ठाक स्थिति में है. वहीं, अगर चीन के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते की बात करें, तो वह भी मजबूत स्थिति में है. चीन की ईवी कार कंपनी BYD ने पिछले साल तुर्की में अपनी फैक्ट्री लगाई, जिसमें उसने करीब करीब 8.5 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था.
2. भारत के साथ व्यापार कम होना
रूस और चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते ठीक होने की वजह से तो वह उछल ही रहा है. इसके साथ ही भारत के साथ उसका व्यापार भी बहुत ज्यादा नहीं है. इसलिए हो सकता है कि उसने भारत की जगह पाकिस्तान का साथ दिया हो. भारत और तुर्की के बीच इंपोर्ट पिछले साल के मुकाबले घटा ही है. भारत अपने निर्यात का कुल 1.5 प्रतिशत ही तुर्की के साथ करता है. आंकड़ों के मुताबिक, जहां साल 2023-24 में भारत ने तुर्की को करीब 65 हजार करोड़ रुपये का निर्यात किया था. वह साल 2024-25 में घटकर 44 हजार करोड़ रुपये रह गया है. इसके अलावा भारत के एक्सपोर्ट में भी तुर्की की हिस्सेदारी बहुत कम है. भारत अपने आयात का कुल 0.5 फीसदी ही तुर्की से करता है. इन आंकड़ों के साफ है कि भारत और तुर्की के बीच सीधे तौर पर ज्यादा कारोबार नहीं होता है. हालांकि, फिर भी भारत तुर्की को कई मोर्चे पर सबक सिखा सकता है.
3.भारत ऐसे सिखा सकता है तुर्की को सबक
भारत और तुर्की के बीच भले ही ज्यादा व्यापार नहीं होता है. लेकिन जितना भी होता है. उसमें अगर भारत की ओर से रोक लगा दी जाती है. तो तुर्की को अच्छा-खासा डेंट लग सकता है. आइए कुछ प्वाइंट्स के जरिए समझते हैं कि भारत तुर्की को कैसे झटका दे सकता है.
1) एक्सपोर्ट- इंपोर्ट पर बैन
जैसा कि हमने ऊपर भी बात की है कि भारत और तुर्की के बीच ज्यादा ट्रेड नहीं होता है. लेकिन अगर उन पर पूरी तरीके से भारत बैन लगा देता है, तो तुर्की को इसका कुछ नुकसान झेलना पड़ेगा. क्योंकि भारत के पास तुर्की के अलावा भी कई सारे ट्रेड ऑप्शन मौजूद हैं. जैसे अगर हम इंपोर्ट की बात करें, तो भारत तुर्की से ज्यादा तर मशीनरी और ऑटोमोबाइल के पार्ट्स मंगाता है. बैन होने के बाद वह इन प्रोडक्ट्स को साउथ कोरिया और जापान जैसे देशों से भी मंगा सकता है. क्योंकि दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे व्यापारिक संबंध हैं.
2) तुर्की का बॉयकॉट
जब से यह खबर आई है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव में तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया है. तभी से देश के बड़े-बड़े सितारों ने तुर्की के बॉयकॉट की अपील की, जिसका असर भी देखने को मिला. मेक माई ट्रिप के मुताबिक, भारत से तुर्की जाने वालों ने अपनी फ्लाइट्स कैंसिल करा ली हैं. पिछले एक हफ्ते में तुर्की-अजरबैजान जाने वाले यात्रियों के कैंसिलेशन 250% बढ़ गए हैं. वहीं, तुर्की का बॉयकॉट अगर ऐसे ही जारी रहा तो उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा. क्योंकि भारत के काफी मात्रा में टूरिस्ट तुर्की घूमने जाते हैं. वहां की जीडीपी का करीब 12 प्रतिशत टूरिज्म पर ही निर्भर है. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 से लेकर साल 2025 तक भारत से तुर्की करीब 11 लाख यात्री गए थे. ऐसे में अगर तुर्की का बॉयकॉट चलता रहा तो उसकी इकोनॉमी पर डेंट लगना तय है.
3) अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेराबंदी
तुर्की को भारत इकोनॉमी के मोर्चे पर घेरने के साथ-साथ भारत तुर्की को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी घेर सकता है. जैसे तुर्की में मानवाधिकार वाइलेशन बढ़ गया है. भारत इस मुद्दे पर तुर्की को यूएन में घेर सकता है. इससे उसकी साख पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा. भारत BRICS, G20 में भी तुर्की का विरोध कर सकता है. उसकी नीतियों पर सवाल खड़ा कर सकता है. आतंकियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान का साथ देने के लिए भी उसकी खिलाफत कर सकता है. ऐसे में तुर्की ग्लोबल मंचों पर अकेला पड़ सकता है.