भोपाल ।   मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रमजान की रौनकों का नजारा बाकी शहरों से कुछ हटकर नजर आता है। रमजान महीने की खास इबादत में शामिल तरावीह (रमजान माह की खास नमाज) के पूरा होने पर तबर्रुक (प्रसाद) के रूप में बांटने का रिवाज है। शहर में मौजूद सैंकड़ों मस्जिदों में आने वाले लाखों नमाजियों की तादाद के लिहाज से यहां बंटने वाला तबर्रुक का कारोबार ही सवा करोड़ रुपए से ज्यादा का होता है। माह ए रमजान में शहर की सभी छोटी बड़ी मस्जिदों में अकीदतमंद तरावीह की नमाज अदा करते हैं। इस खास नमाज के जरिए इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरआन को सुनने का रिवाज है। शहर में मौजूद 600 से ज्यादा मस्जिदों में अलग-अलग अवधि की तरावीह का सिलसिला चलता है। 3, 5, 7 दिन से लेकर 27 दिन तक में इसका समापन होता है। समापन अवसर पर जहां कुरआन सुनाने वाले हाफिज को नजराने के रूप में नगद राशि, कपड़े और सम्मान स्वरूप कई तोहफे दिए जाते हैं, वहीं नमाजियों को इस खास दिन के तोहफे के तौर पर तबर्रुक (प्रसाद) में नुक्ति का वितरण किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक शहर की बड़ी मस्जिदों में, जहां नमाजियों की तादाद ज्यादा होती है, वहां करीब 30 से 40 हजार रुपए की नुक्ति का तबर्रुक बंट जाता है। जबकि छोटी मस्जिदों में भी इस आयोजन में 15 से 20 हजार रुपए की नुक्ति बंट जाना सामान्य बात है।

इफ्तार में भी होता है नुक्ति खारे का इस्तेमाल

शहर की संस्कृति में शामिल नुक्ति खारे भोपाल के इफ्तार दस्तरख्वान की शान माने जाते हैं। इफ्तार में पकवानों में शामिल किए जाने वाले लजीज व्यंजन और पकवानों के बीच नुक्ति खारे की अनिवार्यता जैसा ही है। रमजान महीने में होने वाले इसके कारोबार का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि बुधवारा,  इतवारा, शाहजहांबाद, काजी कैंप आदि की दुकानों से 40 से 45 टन तक नुक्ति खारे बिक्री होने का रिकॉर्ड है। इन दुकानों के लिए डिमांड के लिहाज से माल तैयार करने के लिए जो कारीगर जमा किए जाते हैं, उनका एक दिन का वेतन ही 30 से 35 हजार रूपए रोजाना होता है। जबकि इसकी बिक्री के लिए लगाए जाने वाले स्टॉल पर कार्यकर्ताओं की संख्या भी 15 से 20 पार होती है।

ऐसे लुभाते हैं नुक्ति खारे 

लाल, हरी, पीली रंग की नुक्तियां और उनका साथ देते नमकीन पारे, सेंव और दालमोठ। खाने में स्वादिष्ट भी और सेहत के लिए भी मुफीद। पुराने शहर के बाजारों में सजे इनके स्टॉल बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। शहरभर में सजने वाले नुक्ति खारे के हजारों स्टॉल में इतवारा का जावेद खान का, शाहजहानाबाद में नूर भाई मिठाई वालों का या नूर महल रोड और चौकी इमामबाड़ा पर चांद भाई के हाथों का स्वाद पूरे शहर में खास माना जाता है।

विदेशों तक में मशहूर है स्वाद

इब्राहिमपुरा निवासी रफीक अहमद राजा बताते हैं कि नुक्ती-खारे का इस्तेमाल शहर की पहचान से जुड़ा हुआ है। माश की दाल, चने का आटा और नमकीन सामग्री के साथ तैयार किया गया यह व्यंजन भोपाल की सीमाओं को तोड़ता हुआ न सिर्फ देशभर बल्कि विदेशों तक भी मशहूर है। वे बताते हैं कि दुबई, सउदी अरब, कतर, मस्कत समेत दुनिया के कई मुल्कों में, जहां भोपाल या प्रदेश के लोगों का आना जाना है, वे रमजान माह में नुक्ती-खारे की खास फरमाइश करते हैं और उनके अपने इसको समय पर वहां तक पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं।