शाहजहांपुर में भगवान शिव और माता के सैंकड़ों साल पुराने ऐतिहासिक मंदिर मौजूद हैं. कई मंदिरों का इतिहास तो महाभारत काल से जुड़ा है. यहां पांडवों द्वारा बनाया गया तिकोला देवी का मंदिर भी मौजूद है. लेकिन इन सब में खास है बिसरात घाट पर बना काली माता का मंदिर. यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है. यहां दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

इतिहासकार डॉक्टर विकास खुराना बताते हैं कि हनुमंत धाम के पास बने काली माता के मंदिर की स्थापना काले बाबा नाम के तांत्रिक ने की थी. यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है. सैकड़ो साल पुराने इस मंदिर का जीर्णाेद्वार काले बाबा के शिष्य महानंद सदाचारी ने कराया था. जिसके बाद यहां एक नया मंदिर भी बनाया गया.

द्रविड शैली में बना है मंदिर का गुंबद
इस मंदिर में विख्यात काली पूजा होती है. इस मंदिर का गुंबद द्रविड़ शैली पर बना हुआ है. शहर के इस प्रसिद्ध काली माता के मंदिर का जिक्र शाहजहांपुर के 1910 के गजेटियर में भी किया गया है. गजेटियर में इस बात का जिक्र है कि यहां हनुमान जी की सदियों पुरानी एक मूर्ति भी मिली थी. यहां पर अब उत्तरी भारत की सबसे ऊंची हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है.

घी का दिया जलाने से होती है मनोकामना पूरी

काली माता के प्रसिद्ध मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से 40 दिन तक माता के दरबार में घी का दीपक जलाता है. उनकी मनोकामनाएं मां काली पूरी करती हैं. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु यहां आकर घी का दिया जलाते हैं. इसके अलावा मां को श्रृंगार भी भेंट करते हैं.

नवरात्रि के दिनों में भक्तों की रहती है भीड़

मां काली के इस मंदिर में यूं तो रोजाना श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. वहीं नवरात्रि के दिनों में यहां एक खास मेले का भी आयोजन होता है. जिसमें बड़ी संख्या में मां के भक्त यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. इसके अलावा मंदिर में रोजाना सुबह और शाम भव्य आरती का आयोजन किया जाता है.