ग्वालियर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाने के बाद से प्रदेश नेतृत्व में परिवर्तन की चर्चाओं पर भी विराम लगता नजर आ रहा है। ग्वालियर-चंबल में 2018 के चुनाव में टिकट के लिए मचे घमासान से भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था, यहां भाजपा सात सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जबकि, इसके पांच साल पहले 2013 में एंटी इनकंबेंसी होने के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा था।
ग्वालियर-चंबल अंचल की 34 में 20 सीटों पर जीत मिली थी। 2013 का विधानसभा चुनाव तोमर के ही नेतृत्व में लड़ा गया था। अब 2023 की सत्ता विरोधी लहर में फिर कमान तोमर के हाथ है, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को साथ लेकर 2013 के प्रदर्शन को दोहराना बड़ी चुनौती है। वार्ड पार्षद से राजनीति की शुरुआत करने वाले नरेंद्र सिंह तोमर के पास जमीन से सत्ता के शिखर तक पहुंचने का लंबा अनुभव है। संगठन में युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष से लेकर, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री के साथ उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों का प्रभार संभालकर पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में उन्होंने कई बार भूमिका निभाई है। 2017 में उप्र में तोमर की मेहनत से ही भाजपा को सत्ता का शिखर प्राप्त हुआ। मप्र तोमर का गृह प्रदेश है। यहां के राजनीतिक मिजाज से वे अच्छे से परिचित हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं की नाराजगी उनसे बेहतर कोई नहीं समझ सकेगा।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद कई परिस्थितियां बदली हैं। इसके पहले अंचल में नरेंद्र सिंह तोमर एकमात्र सर्वमान्य नेता माने जाते थे। अब दूसरे ध्रुव के रूप में सिंधिया उनके सामने हैं। नरेंद्र सिंह को उनको साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी है। भाजपा की विचारधारा के प्रति समर्पित कार्यकर्ता लगातार हो रही उपेक्षा से नाराज हैं। तोमर अपने लंबे अनुभव से कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर उनकी नाराजगी दूर करने में कामयाब होंगे या नहीं, यह आने वाला समय बताएगा। नेतृत्व को विश्वास है कि कार्यकर्ता की नाराजगी दूर होगी। नरेंद्र सिंह तोमर के सामने एक बड़ी चुनौती हवा का रुख बदलना है। विधानसभा चुनाव से पहले ही सत्ता विरोधी लहर की आहट सुनाई दे रही है। हवा के रुख को कार्यकर्ताओं के बूते से बदला जा सकता है। उम्मीद है, ऐसा करने में वे सफल होंगे।