भोपाल ।   मध्य प्रदेश में आदिवासियों के विकास और उनके जीवन में बदलाव लाने में राज्यपाल मंगुभाई पटेल भी पीछे नहीं हैं। आदिवासी बिरादरी से आने वाले पटेल ने मध्य प्रदेश का कार्यभार संभालते ही यहां के आदिवासी समुदाय में पैठ बनाने का जिम्मा संभाला। आठ जुलाई 2021 को पदभार ग्रहण करने के बाद राज्यपाल ने राजभवन में न सिर्फ जनजातीय प्रकोष्ठ का गठन किया, बल्कि आदिवासियों से सीधा संवाद स्थापित किया। इसके लिए वे अब तक 38 जिलों में 72 बार प्रवास कर चुके हैं। केंद्र की मोदी सरकार हो या मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार, आदिवासी कल्याण की योजनाओं की निगरानी राज्यपाल सीधे कर रहे हैं। वे आदिवासियों के बीच जाते हैं और उनकी समस्याएं सुनते हैं। उनके साथ भोजन करते हैं। आदिवासी कल्याण के लिए अब तक राज्य स्तर पर 12 बैठकें कर चुके हैं। 12 जिलों में रोग उपचार एवं प्रबंधन पर अधिकारियों से चर्चा कर चुके हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उनकी सक्रियता को राजनीतिक नजरिये से तो नहीं देखा जा सकता है, पर उनकी सक्रियता का लाभ भाजपा को मिल सकता है। उनकी सक्रियता को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए, क्योंकि 2018 में आदिवासी समाज की बेरुखी के कारण भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी और अब सरकार फिर चुनाव की दहलीज (वर्ष 2023) पर खड़ी है। गुजरात में आदिवासी कल्याण विभाग के करीब 12 साल मंत्री रहते हुए पटेल ने इस समाज के कल्याण के कई काम किए। भोपाल में आयोजित तेंदूपत्ता संग्राहकों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पटेल के कार्यों का उल्लेख कर चुके हैं। जिन्हें वे मध्य प्रदेश में भी जारी रखे हुए हैं। उन्होंने उस मिथक को तोड़ा है कि राज्यपाल सिर्फ राजभवन की चाहदीवारी में रहेंगे। वे मध्य प्रदेश में पहले दिन से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। आदिवासी समुदाय में होने वाले आनुवांशिक रोग सिकल सेल एनीमिया को लेकर वे लगातार काम कर रहे हैं। विभिन्न् विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक हो या स्वास्थ्य, जनजातीय कार्य और सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों से चर्चा, वे इस रोग के निदान पर बात करने से नहीं चूकते हैं। इसके अलावा इस वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न् योजनाओं का लाभ समाज को दिलाने के लिए भी वे लगातार सक्रिय हैं। राज्यपाल जनजातीय अंचल में दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर जमीनी हकीकत देख रहे हैं और समाज के पिछड़े और वंचित वर्ग के लोगों से संवाद कर उनके दुख-दर्द को समझने की कोशिश करते हैं।

योजनाओं की निगरानी कर रहा प्रकोष्ठ

प्रदेश में पहली बार राजभवन ने 'जनजातीय प्रकोष्ठ" का गठन किया है, जो आदिवासी वर्ग के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही विभिन्न् योजनाओं की निगरानी कर रहा है। सेवानिवृत्त आइएएस दीपक खांडेकर की देखरेख में बनाए गए प्रकोष्ठ ने निगरानी शुरू भी कर दी है। प्रकोष्ठ यह भी देख रहा है कि आदिवासियों पर दर्ज ऐसे प्रकरणों को कैसे वापस लिया जाए, जो आपराधिक पृष्ठभूमि के नहीं हैं। प्रकोष्ठ राज्यपाल द्वारा दिए जा रहे निर्देशों के पालन की स्थिति पर भी लगातार नजर रख रहा है।

आदिवासी कांग्रेस का वोट बैंक

मध्य प्रदेश में आदिवासी समाज कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक है। राज्य में 21 प्रतिशत से अधिक आदिवासी हैं और इस वर्ग के लिए विधानसभा में 47 सीटें आरक्षित हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा 31 सीटें जीतकर तीसरी बार सत्ता में आई थी पर 2018 के चुनाव में भाजपा को इस वर्ग का साथ नहीं मिला था। पार्टी सिर्फ 16 सीट जीत पाई थी। इसलिए 2023 के चुनाव के लिए राज्य और केंद्र सरकारें आदिवासी वर्ग को रिझाने में जुटी हैं। इसके लिए जनजातीय गौरव दिवस, तेंदूपत्ता संग्राहकों का सम्मेलन जैसे बड़े आयोजन और कई योजनाएं शुरू की गई हैं।